केंद्रीय जल आयोग और तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण विभाग (डीओडब्ल्यूआर, आरडी और जीआर)) द्वारा तैयार राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को ठोस आकार देने एवं व्यवहार्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए प्रायद्वीपीय नदी प्रणाली के जल संसाधनों के इष्टतम उपयोग के लिए वैज्ञानिक और यथार्थवादी आधार पर जल संतुलन और अन्य अध्ययन के लिए राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण (राजविअ) की स्थापना जुलाई 1982 में सोसाइटी पंजीकरण अधिनियम 1860 के अंतर्गत एक स्वायत्त सोसाइटी के रूप में की गई थी। वर्ष 1990 में, राजविअ को राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना के हिमालयी घटक का कार्य भी सौंपा गया था। वर्ष 2006 में यह निर्णय लिया गया था कि राजविअ अंतर-राज्यीय लिंकों की व्यवहार्यता का पता लगाएगा और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) के अंतर्गत नदी लिंक प्रस्तावों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने का कार्य शुरू करेगा। राजविअ के कार्यों को अंतर-राज्यीय लिंकों की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने का कार्य करने के लिए दिनांक 19/05/2011 के जल संसाधन मंत्रालय के संकल्प में और संशोधन किया गया था। हाल ही में 7 अक्टूबर, 2016 को राजविअ के कार्यों को प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना (पीएमकेएसवाई) के अंतर्गत आईएलआर परियोजनाओं के कार्यान्वयन और जल संसाधन परियोजनाओं को पूरा करने और परियोजनाओं के निष्पादन के लिए बैंकों / अन्य संस्थानों से उधार ली गई निधि या ऋण के भंडार के रूप में कार्य करने के लिए संशोधित किया गया था।
राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी)
आजादी के समय देश की आबादी लगभग 400 मिलियन थी और गंभीर खाद्य संकट का सामना करना पड़ा रहा था । उस समय देश की सिंचाई क्षमता लगभग 20 मेगा हेक्टेयर थी। स्वतंत्रता के बाद सतह और भूजल संसाधनों दोनों के विकास और उपयोग के लिए सिंचाई का कार्यक्रम शुरू किया गया था। इसके परिणामस्वरूप हरित क्रांति हुई, जिसने देश को भोजन की कमी की स्थिति से खाद्य आत्मनिर्भरता लाने में में मदद मिली । इन व्यापक प्रयासों के कारण, वर्ष 1979 तक सिंचाई के अंतर्गत संभव उच्च उपज वाली किस्मों के उपयोग और उर्वरकों के बढ़ते उपयोग के साथ देश की सिंचाई क्षमता बढ़कर 57 मेगा हेक्टेयर हो गई। इसी समय तक देश का खाद्य उत्पादन लगभग 125 से 130 मिलियन टन तक बढ़ गया था। हालांकि, खाद्य उत्पादन में वृद्धि की दर जनसंख्या वृद्धि की दर के बराबर थी ।
पानी कृषि के लिए मुख्य घटक है और मानव जीवन के लिए भी एक महत्वपूर्ण तत्व है, इसका इष्टतम उपयोग आवश्यक है। देश के जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने की दृष्टि से, तत्कालीन सिंचाई मंत्री डॉ. केएल राव ने वर्ष 1972 में गंगा को कावेरी नदी से जोड़कर नदियों को जोड़ने का विचार रखा था। इसके बाद, 1977 में कैप्टन दस्तूर ने हिमालय, मध्य और प्रायद्वीपीय भारत के चारों ओर "गारलैंड नहर" की अवधारणा शुरू की। प्रस्तावों को हालांकि समुदायों के सभी क्षेत्रों से बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली, लेकिन कार्यान्वयन के लिए तकनीकी-आर्थिक व्यवहार्य नहीं पाया गया।
जल संसाधन विकास में लगे कई लोगों द्वारा दिखाई गई निरंतर रुचि ने अंतर बेसिन जल अंतरण प्रस्तावों को अधिक विवरण में अध्ययन करने के लिए और अधिक प्रोत्साहन दिया गया । तत्कालीन सिंचाई मंत्रालय (अब जल शक्ति मंत्रालय) और केन्द्रीय जल आयोग ने 1980 में जल संसाधन विकास के लिए एक राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की थी, जिसमें क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने और उपलब्ध जल संसाधनों का इष्टतम उपयोग करने की दृष्टि से अधिशेष बेसिनों से जल की कमी वाले बेसिनों में जल के अंतर बेसिन अंतरण की परिकल्पना की गई थी। राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना में दो घटक नामत हिमालयी नदी विकास और प्रायद्वीपीय नदी विकास शामिल हैं।
हिमालयी नदियों का विकास:
हिमालयी नदी विकास घटक में भारत, नेपाल और भूटान में गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों की प्रमुख सहायक नदियों पर भंडारण जलाशयों के निर्माण के साथ-साथ गंगा नदी की पूर्वी सहायक नदियों के अधिशेष प्रवाह को पश्चिम में स्थानांतरित करने के लिए नदी प्रणालियों को जोड़ने की परिकल्पना की गई है।
प्रायद्वीपीय नदियों का विकास:
प्रायद्वीपीय नदी विकास घटक को चार प्रमुख भागों में विभाजित किया गया है।
1. महानदी-गोदावरी-कृष्णा-कावेरी नदियों को आपस में जोड़ना और इन बेसिनों में संभावित स्थलों पर भंडारण का निर्माण करना।
इस भाग में प्रमुख नदी प्रणालियों को आपस में जोड़ना शामिल है, जहां महानदी और गोदावरी से अधिशेष को कृष्णा और कावेरी नदियों के माध्यम से दक्षिण में जरूरतमंद क्षेत्रों में स्थानांतरित करने की परिकल्पना है।
2. मुंबई के उत्तर में और तापी के दक्षिण में पश्चिम की ओर बहने वाली नदियों को आपस में जोड़ना।
इस स्कीम में इन धाराओं पर यथासंभव इष्टतम भंडारण के निर्माण और उन्हें आपस में जोड़ने की परिकल्पना की गई है ताकि उन क्षेत्रों में अंतरण के लिए पर्याप्त मात्रा में जल उपलब्ध कराया जा सके जहां अतिरिक्त जल की आवश्यकता है। यह योजना मुंबई के महानगरीय क्षेत्रों को जल आपूर्ति नहर प्रदान करती है, यह महाराष्ट्र में तटीय क्षेत्रों में सिंचाई भी प्रदान करती है।
3. केन-चंबल को आपस में जोड़ना:
इस योजना में मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के लिए एक जल ग्रिड और यथासंभव भंडारण द्वारा नहर को जोड़ने का प्रावधान है।
4. पश्चिम की ओर बहने वाली अन्य नदियों का पथांतरण :
पश्चिमी घाट के पश्चिमी हिस्से में उच्च वर्षा कई धाराओं में बहती है जिससे उत्पन नदियां अरब सागर में बहती है। केरल की सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के साथ-साथ सूखा प्रभावित क्षेत्रों की जरूरतों को पूरा करने के लिए पूर्व की ओर कुछ पानी के अंतरण के लिए पर्याप्त भंडारण द्वारा एक अंतर जोड़ नहर प्रणाली के निर्माण की योजना बनाई जा सकती है।
एनपीपी के प्रस्तावों में, जल के अंतरण का प्रस्ताव मुख्यत गुरुत्वाकर्षण द्वारा किया गया है, लिफ्टों को न्यूनतम रखा गया है और लगभग 120 मीटर तक सीमित रखा गया है और निकट भविष्य में बेसिन में सभी आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद केवल अधिशेष बाढ़ जल की योजना जल की कमी वाले क्षेत्रों में अंतरण के लिए बनाई गई है।