तकनीकी सलाहकार समिति

  • रा.ज.वि.अ. सोसाइटी के शासी निकाय ने अभिकरण द्वारा तैयार किए गए विभिन्न तकनीकी प्रस्तावों का परीक्षण एवं जांच करने हेतु केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष की अध्यक्षता में तकनीकी सलाहकार समिति (त.स.स.) का गठन किया है। रा.ज.वि.अ. के शासी निकाय की 48वीं बैठक में रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति की बैठकों में आमंत्रित किए जाने के लिए प्रमुख अभियंता, जल संसाधन विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार; प्रमुख अभियंता, सिंचाई विभाग, उत्तराखंड सरकार; प्रमुख अभियंता, जल संसाधन विभाग, झारखंड सरकार को अनुमोदित किया है।
  • रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति की अब तक 42 बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।

रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति के सदस्यगण

क्रमांक संख्या शासी निकाय के नाम पद
1. अध्यक्ष, केंद्रीय जल आयोग, नई दिल्ली अध्यक्ष
2. सदस्य (डब्ल्यू.पी. एण्‍ड पी.), केंद्रीय जल आयोग, नई दिल्ली सदस्य
3. सदस्य (डी. एण्‍ड आर.), केंद्रीय जल आयोग, नई दिल्ली सदस्य
4. सदस्य (एच.ई.), केंद्रीय विद्युत प्राधिकरण, नई दिल्ली सदस्य
5. संयुक्त सचिव, कृषि एवं सहकारिता विभाग, नई दिल्ली सदस्य
6. सलाहकार (आई.ए.), पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, नई दिल्ली सदस्य
7. महानिदेशक, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, कोलकाता सदस्य
8. अध्यक्ष, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड सदस्य
9. महानिदेशक, भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, नई दिल्ली सदस्य
10. निदेशक/वैज्ञानिक (एफ), राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, रूड़की सदस्य
11. अध्यक्ष, भारतीय अंतर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण, नोएडा सदस्य
12. महानिदेशक, राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण, नई दिल्ली सदस्य-सचिव
विशेष आमंत्रित
13. मुख्य अभियंता (जल संसाधन), सिंचाई विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार
14. मुख्य अभियंता एवं संयुक्त सचिव, नर्मदा एवं जल संसाधन विभाग, गुजरात सरकार
15. प्रमुख अभियंता (अंतर्राज्यीयएवं जल संसाधन), सिंचाई विभाग, आंध्र प्रदेश सरकार
16. प्रमुख अभियंता (बोधी), जल संसाधन विभाग, मध्य प्रदेश सरकार
17. मुख्य अभियंता (जल संसाधन) एवं संयुक्त सचिव, सिंचाई विभाग, महाराष्ट्र सरकार
18. मुख्य अभियंता, अंतर्राज्यीय जल, केरल सरकार
19. मुख्य अभियंता (सिंचाई, अभिकल्प एवं अनुसंधान), सिंचाई इकाई, राजस्थान सरकार
20. प्रमुख अभियंता, जल संसाधन संगठन, तमिलनाडु सरकार
21. मुख्य अभियंता, केंद्रीय योजना इकाई, सिंचाई विभाग, ओडिशा सरकार
22. मुख्य अभियंता, सिंचाई विभाग, जल संसाधन विकास संगठन, कर्नाटक सरकार
23. मुख्य अभियंता (उद्वहन नहरें), सिंचाई विभाग, हरियाणा सरकार
24. मुख्य अभियंता, पी.पी. प्रकोष्ठ, जल संसाधन विकास, बिहार सरकार
25. मुख्य अभियंता (अभिकल्प एवं अनुसंधान), सिंचाई एवं जलमार्ग निदेशालय, पश्चिम बंगाल सरकार
26. मुख्य अभियंता (पी. एण्‍ड डी.), ब्रह्मपुत्र बोर्ड, गुवाहाटी, असम
27. मुख्य अभियंता, सिंचाई विभाग, असम सरकार
28. मुख्य अभियंता (जल संसाधन), सिंचाई कार्य, पंजाब सरकार
29. मुख्य अभियंता (आई. एण्‍ड एफ.), राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र, दिल्ली सरकार
30. प्रमुख अभियंता, जल संसाधन विभाग, छत्तीसगढ़ सरकार
31. मुख्य अभियंता एवं विभागाध्यक्ष, सिंचाई विभाग, उत्तराखंड सरकार
32. प्रमुख अभियंता, जल संसाधन विभाग, झारखंड सरकार

रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति (त.स.स.) द्वारा प्रदान किए गए तकनीकी मार्गदर्शन का संकलन

जल संतुलन प्रतिवेदनों, पूर्व-संभाव्यता/संभाव्यता प्रतिवेदनों आदि को तैयार करने हेतु विभिन्न महत्वपूर्ण पहलुओं पर अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं/पद्धतियों पर अनेक दिशा-निर्देशों को रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति की विभिन्न बैठकों में विचार-विमर्श के दौरान समय-समय पर अनुमोदित किया गया है। त.स.स. की बैठकों की तिथियां (रा.ज.वि.अ. की स्थापना से अब तक) अनुलग्नक-I पर दी गई हैं।

रा.ज.वि.अ. की त.स.स. बैठकों द्वारा दिए गए दिशानिर्देश निम्नलिखित हैं:-

अंत:राज्यीय लिंकों के पूर्व संभाव्यता प्रतिवेदन/संभाव्यता प्रतिवेदन तैयार करने के लिए तकनीकी दिशानिर्देशों के संबंध में महानिदेशक, रा.ज.वि.अ. ने अंतर्बेसिन जल अंतरण प्रस्ताव के संभाव्यता प्रतिवेदन तैयार करने के लिए सर्वेक्षणों और अन्वेषण के लिए अपनाए गए समान तकनीकी दिशानिर्देशों का पालन किए जाने का प्रस्ताव दिया, जिसे 1996 में तकनीकी सलाहकार समिति द्वारा अनुमोदित किया गया। इन अंत:राज्यों प्रस्तावों की संभाव्यता रिपोर्ट तैयार करने के लिए तकनीकी सलाहकार समूह इन दिशा-निर्देशों का उपयोग करने पर भी सहमत हुआ। (37वीं त.स.स.)

 

  1. मृदा, भूमि उपयोग, डेल्टा एवं जल उपयोग:-
    1. बेसिनों/उप-बेसिनों की कृषि योग्य भूमि में स्थायी चरागाहों एवं अन्य चराई भूमि को सम्मिलित करने की आवश्यकता नहीं है तथा स्थायी चरागाहों एवं अन्य चराई भूमि की सिंचाई के लिए पृथक से कोई प्रावधान आवश्यक नहीं होगा। (9वीं त.स.स.)
    2. विभिन्न राज्यों के आर्थिक एवं कृषि सांख्यिकी निदेशालयों द्वारा भूमि उपयोग सांख्यिकी से एकत्रित बेसिनों के भूमि उपयोग आंकड़ों को प्राप्त करने की वर्तमान प्रक्रिया को रा.ज.वि.अ. जारी रखेगा। (9वीं त.स.स.)
    3. जल संतुलन अध्ययनों में रा.ज.वि.अ. द्वारा सुझाए गए फसल अनुक्रमों में चारे की फसलों को शामिल किया जाए। (9वीं त.स.स.)
    4. बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं के प्रस्तावित फसल अनुक्रम पर मतैक्यता के लिए रा.ज.वि.अ. द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया को जारी रह सकती है। (10वीं त.स.स.)
    5.  बड़ी, मध्यम एवं लघु परियोजनाओं के समग्र डेल्टा की गणना स्टेशन या बेसिन/उप-बेसिन के भीतर या समीपस्थ स्टेशन के जलवायु विज्ञानी आंकड़ों के आधार पर की जानी चाहिए। लघु परियोजनाओं के डेल्टा की गणना के लिए 80% सिंचाई क्षमता एवं भंडारण से निकाले गए जल की 10% वाष्पीकरण हानि मानी जा सकती है। (10वीं त.स.स.)
    6. कृषि योग्य कमान क्षेत्र को 2025 ई. तक प्रक्षेपित करने की आवश्यकता नहीं है एवं हाल ही के वर्षों के अधिकतम कृषि योग्य क्षेत्र को सम्मिलित करना पर्याप्त होगा। (11वीं त.स.स.)
    7. यदि रा.ज.वि.अ. एवं राज्य सरकारों के मध्य किसी बेसिन/उप-बेसिन के जलग्रहण क्षेत्र आंकड़ों में 5% तक की भिन्नता है, तो आंकड़ों में परिवर्तन करने की आवश्यकता नहीं है। (12वीं त.स.स.)
    8. भारतीय मौसम विभाग द्वारा प्रकाशित वाष्पन-वाष्पोत्सर्जन के आई.एम.डी. मूल्यों को भविष्य की अभिज्ञात बड़ी, मध्यम एवं लघु परियोजनाओं की फसल जल आवश्यकता की गणना करने में उपयोग किया जा सकता है। (12वीं त.स.स.)
    9. यह मतैक्यता हुई थी कि भविष्य में ऐसी परियोजनाएं जिनके परियोजना प्रतिवेदन केंद्रीय जल आयोग द्वारा पहले ही अनुमोदित किए जा चुके हैं, उनमें दिए गए फसल अनुक्रम को अपनाना चाहिए तथा भविष्य की अन्य परियोजनाओं के लिए लागू होने वाले फसल अनुक्रम जल की उपलब्धता एवं मृदा की वहनीय क्षमता पर आधारित होंगे। (15वीं त.स.स.)
    10. भविष्य में यदि कोई अध्ययन किया जाता है तो धान की फसलों का जी. आई. आर. निर्धारित करते समय बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं के लिए 65% एवं लघु परियोजनाओं के लिए 80% संवहन क्षमता पर विचार किया जाएगा। रा.ज.वि.अ. द्वारा पूर्व में पूर्ण किए गए अध्ययनों में विद्यमान एवं प्रस्तावित पद्धतियों के महत्वहीन परिवर्तनों को ध्यान में रखते हुए संशोधन किए जाने की आवश्यकता नहीं है। (17वीं त.स.स.)
    11. वर्तमान पद्धति के अनुसार, सुझाए गए फसल अनुक्रम की वर्तमान पद्धति के आधार पर एवं जलवायु विज्ञान दृष्टिकोण से जल की आवश्यकता की गणना की जा सकती है। (22वीं त.स.स.)
    12. बुवाई-पूर्व सिंचाई में 20% का रबी क्षेत्र 50 मिमी सहित प्रदान किए जाने की प्रथा एक भविष्य की परियोजना में आयोजना के उद्देश्य से पर्याप्त होगी। (24वीं त.स.स.)
  2. यील्ड की गणना:-
    1. वर्षा-अपवाह के सह-संबंधों का उपयोग करके किए जाने वाले यील्ड अध्ययनों, जिनमें मानसून महीनों को पूरा माना जाता है, को रा.ज.वि.अ. द्वारा जारी रखा जाएगा। जहां किसी उप-बेसिन के लिए रा.ज.वि.अ. द्वारा मासिक वर्षा-अपवाह सह-संबंध प्राप्त करेगा, वहां बहुल-सहसंबंधों पर विचार किया जाना चाहिए। (9वीं त.स.स.)
    2. ऐसे मामलों में, जहां कोई भी जी. एण्‍ड डी. स्थल नहीं हैं अथवा विद्यमान जी. एण्‍ड. डी. स्थल जिनमें जलग्रहण क्षेत्र के केवल एक छोटे भाग को ही दायरे में लिया जाता है, वहां जल मौसम विज्ञानी रूप से समान समीपस्थ बेसिनों/उप-बेसिनों के प्राप्त किए गए वर्षा-अपवाह संबंध को अपनाया जा सकता है। (10वीं त.स.स.)
    3. राज्य की सीमाओं पर विभिन्न बेसिनों/उप-बेसिनों के पृथक जल विज्ञानी एवं जल संतुलन अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं होगी। (10वीं त.स.स.)
    4. प्रकृत यील्ड के निर्धारण में अंत:-बेसिन एवं आयातित दोनों जल के उर्ध्वप्रवाह उपयोग से पुन:उत्पादन पर विचार किया जाना चाहिए। (10वीं त.स.स.)
    5. उप-बेसिनों/बेसिनों की परियोजना की गत आवश्यकताओं को प्रस्तुत करते समय, पंचाटों/अनुबंधों द्वारा इंगित किए गए आवंटनों को बिना किसी परिवर्तन के अध्ययन में रखा जाएगा। (10वीं त.स.स.)
    6. राज्य की सीमाओं पर सतही जल यील्ड की गणना करने की आवश्यकता नहीं है। अनुमान की न्यूनतम मानक त्रुटि के आधार पर सर्वश्रेष्ठ उपयुक्त समीकरणों का निर्णय करने हेतु आकलन की विद्यमान प्रक्रिया को जारी रखा जा सकता है। (11वीं त.स.स.)
    7. अतिरिक्त आंकड़े उपलब्ध होने पर 10 वर्षों के पश्चात् जल विज्ञानी अध्ययनों का अद्यतन किया जा सकता है। (17वीं त.स.स.)
    8. यद्यपि सभी वैकल्पिक पद्धतियों के कम्प्यूटर कार्यक्रम विकसित किए गए हैं, इसके बाद भी पहले से उपयोग किए जा रहे जल संतुलन अध्ययनों हेतु रेखिक/गैर-रेखिक प्रकार के सह-संबंध जारी रखे जा सकते हैं। (18वीं त.स.स.)
    9. आयात/निर्यात :- जल संतुलन अध्ययन को अद्यतन करते हुए एक उप-बेसिन के निर्यात/आयात की तदनुरूप बेसिन/उप-बेसिनों के आंकड़ों के साथ तुलना की जा सकती है। गैर-आवंटित निर्यात/आयात का मिलान किया जा सकता है। उपरोक्त जल विज्ञान संबंधी जांच आयात/निर्यात आंकड़ों के लिए भी की जा सकती है। (22वीं त.स.स.)
  3. जल की उपलब्धता:-
    1. रा.ज.वि.अ. के जल संतुलन अध्ययनों में जल उपलब्धता 75% एवं 50% निर्भरता दोनों पर परियोजित की जा सकती है। तथापि, प्रस्तावित योजनाओं में 75% सफलता दर होनी चाहिए। (7वीं त.स.स.)
    2. रा.ज.वि.अ. के प्रतिवेदनों में बेसिन में उपलब्ध जल संसाधनों में सकल मानसून सतही जल एवं पुनर्भरणीय भूजल क्षमता का योग सम्मिलित करना चाहिए। बेसिन के बाहर अधिशेष जल के किसी अंतरण के लिए, बेसिन में मानसूनी बहाव को प्रयोग में लेना होगा। (10वीं त.स.स.)
    3. अतिरिक्त आंकड़े उपलब्ध होने पर, 10 वर्षों के पश्चात् जल संतुलन अध्ययनों का अद्यतित‍ किया जा सकता है। (17वीं त.स.स.)

परियोजना स्थल तक जल की उपलब्धता की जांच निम्नलिखित आधारों पर की जानी चाहिए:-

  1. बहाव श्रृंखला, प्रेक्षित आंकड़ों पर आधारित है तथा विद्यमान उपयोग के लिए उनका संशोधन किया गया है।
  2. परियोजना स्थल के लिए विस्तारित प्रवाह श्रृंखला वर्षा-अपवाह के सह-संबंधों पर आधारित होती है।
  3. समीपस्थ जल मौसम विज्ञानी सदृश जल विभाजक के लिए वर्षा-अपवाह के सह-संबंधों के आधार पर विस्तारित प्रवाह श्रृंखला।

आनुपातिक आधार:

  1. उपरोक्तानुसार 50% और 75% यील्ड की गणना को उर्ध्वप्रवाह के चरम उपयोग के लिए आगे समायोजित किया जा सकता है और निर्यात-आयात की गणना 50% और 75% निर्भरता योग्य उपलब्धता पर की जाए।
  2. पथांतरण की ‍स्थिति में किसी भी परियोजना का जल उपयोग अधिकतम 75% निर्भरता योग्य तक प्रतिबंधित होना चाहिए। तथापि, भंडारण आगे बढ़ाने के प्रावधानों सहित भंडारण परियोजनाओं की आवश्यकताएं 75% निर्भरता योग्य से अधिक हो सकती हैं।
  3. बाँध स्थलों की उपयुक्तता : इस पहलू को राज्य सरकारों/मास्टर प्लान द्वारा प्रदान की गई जानकारी के अनुसार स्वीकार किया जा सकता है। (22वीं त.स.स.)
  4. भूजल:-
    1. रा.ज.वि.अ. द्वारा तैयार किए जा रहे जल संतुलन अध्ययनों में भूजल संभाव्यता को राज्यों पर छोड़ दिया जाए तथा इसे एक उपलब्ध संसाधन न माना जाए। (7वीं त.स.स.)
    2. यद्यपि जल संतुलन प्रतिवेदनों में भूजल की उपलब्धता, पूर्व के प्रतिवेदनों की भांति विद्यमान और प्रक्षेपित उपयोग आदि, राज्यवार प्रस्तुत किए जाने चाहिए और किसी भी बेसिन में भूजल उपलब्धता के कोई अधिशेष या कमी के आकलन या अभिज्ञान के कोई प्रयास नहीं किए जाने चाहिए। भूजल को उपयोग के लिए पूरी तरह से संबंधित राज्य के लिए छोड़ दिए जाए। (9वीं त.स.स.)
    3. जब किसी बेसिन में निष्कर्षणीय भूजल पर कोई विशेष अध्ययन या परिणाम उपलब्ध नहीं हों, तो भूजल आकलन समिति, 1984 की अनुशंसाओं के अनुसार केंद्रीय भूमि जल बोर्ड द्वारा आकलित भूजल संसाधन क्षमता को रा.ज.वि.अ. अपने अध्ययनों में शामिल कर सकता है। आधारिक बहाव में कोई भी सुधार नहीं किया जाएगा क्योंकि केंद्रीय भूमि जल बोर्ड द्वारा निर्धारित भूजल निर्धारण में आवश्यक सुधार समाविष्ट कर लिए हैं। (9वीं त.स.स.)
    4. आंकड़ों की उपलब्धता के आधार पर बेसिनों/उप-बेसिनों के भूजल नक्शों को तैयार करने हेतु रा.ज.वि.अ. को प्रयास करने चाहिए। (10वीं त.स.स.)
    5. सिंचाई उपयोग के लिए उपलब्ध भूजल क्षमता प्राप्त करने के लिए, केंद्रीय भूमि जल बोर्ड/राज्य भूमि जल बोर्डों द्वारा स्थिर आपूर्ति द्वारा निर्धारित बेसिन/उप-बेसिन की सकल भूजल क्षमता को रा.ज.वि.अ. के अध्ययनों में सम्मिलित किया जा सकता है तथा उसमें से रा.ज.वि.अ. द्वारा आकलित घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग को घटा सकता है। (10वीं त.स.स.)
    6. केंद्रीय भूमि जल बोर्ड/राज्य भूमि जल बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराई गई भूजल क्षमता पर तहसीलवार/जिलावार सांख्यिकी की गणना किए जाने की वर्तमान प्रथा जारी रहेगी। बेसिनों/उप-बेसिनों से संबंधित किसी भी विशेष अध्ययन का परिणाम उपलब्ध हैं, तो रा.ज.वि.अ. द्वारा उन पर विचार किया जाएगा। (10वीं त.स.स.)
    7. रा.ज.वि.अ. को अपने प्रतिवेदन में सकल मानसून सतही जल एवं पुनर्भरण योग्य भूजल क्षमता को जोड़कर बेसिन में उपलब्ध जल संसाधनों में सम्मिलित करना चाहिए। बेसिन के बाहर अधिशेष जल के किसी अंतरण के लिए बेसिन में मानसूनी बहाव को प्रयोग में लेना होगा। (10वीं त.स.स.)
    8. 8. भूजल को पृथक राज्यवार संसाधन के रूप में दर्शाया जाना जारी रखा जाना चाहिए। किसी भी बेसिन/उप-बेसिन के अधिशेष/न्यूनता का आकलन करने हेतु केवल मानसूनी एवं गैर-मानसूनी सतही प्रवाह को ही लेना चाहिए। इस तरह के आकलन के लिए विभिन्न न्यायाधिकरणों द्वारा संबंधित बेसिनों के संबंध में दिए गए पंचाटों को भी ध्यान में रखना चाहिए। (11वीं त.स.स.)
    9. भूजल क्षमता का आकलन करने हेतु रा.ज.वि.अ. को जल की न्यूनता वाली उप-बेसिनों/बेसिनों के जल संतुलन अध्ययनों की समीक्षा करनी चाहिए। (15वीं त.स.स.)
    10. भूजल को एक अलग संसाधन के रूप में दर्शाने पर मतैक्यता हुई। (16वीं त.स.स.)
    11. वार्षिक भूजल पुनर्भरण आदि के संबंध में निर्धारण एवं मात्रा निर्धारण में आने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए तकनीकी सलाहकार समिति ने निर्णय लिया कि रा.ज.वि.अ. के जल संतुलन अध्ययनों में भूजल सम्मिलित न किया जाए। अतः रा.ज.वि.अ. को अपने अध्ययनों में जल संतुलन का आकलन करने के दौरान केवल सतही जल संसाधन को सम्मिलित करने की विद्यमान प्रथा को जारी रखना चाहिए। (32वीं त.स.स.)

V. जल आवश्यकताएं:-

घरेलू एवं औद्योगिक जल आवश्यकताएं -

  1. रा.ज.वि.अ. के अध्ययनों में नदियों से पथांतरित या नदियों, जलाशयों, भंडारणों, नहरों आदि से उद्वहन किए गए सतही जल का घरेलू तथा औद्योगिक उपयोग का क्षयी उपभोग क्रमशः 20% तथा 2.5% लिया जाएगा। (7वीं त.स.स.)
  2. ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्र में प्रति व्यक्ति जल की खपत क्रमशः 70 ली० एवं 200 ली० आकलित की जाए, जो कि निर्माण एवं आवास मंत्रालय की अनुशंसाओं पर आधारित है। (10वीं त.स.स.)
  3. ग्रामीण जल आवश्यकता का 50% एवं पशुधन की समग्र जल आवश्यकताओं को भूजल स्रोतों से पूरा किए जाने का प्रस्ताव है। नगरीय जल की आवश्यकता पूरी तरह से तथा ग्रामीण जल आवश्यकता की 50% पूर्ति सतही जल स्रोतों से की जाएगी। (11वीं त.स.स.)
  4. सभी औद्योगिक जल आवश्यकताओं की पूर्ति सतही जल स्रोतों से की जाएगी। (11वीं त.स.स.)
  5. रा.ज.वि.अ. के अध्ययनों में नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 200 ली० एवं 70 ली० प्रति व्यक्ति जल की ली गई आवश्यकता को वर्तमान में जारी रखा जा सकता है, क्योंकि इससे 80% जल वापस प्रणाली में लौट जाता है तथा जल की समग्र उपलब्धता पर इसने अच्छा प्रभाव छोड़ा है। (15वीं त.स.स.)
  6. जल संतुलन अध्ययनों को अद्यतन करने के लिए यह निर्णय लिया गया कि अध्ययनों को संशोधित करते समय जनसंख्या प्रक्षेपणों (जो कि वर्तमान में 2025 ई० तक हैं), 2050 ई० तक के लिए किए जा सकते हैं। (22वीं त.स.स.)

VI. लवणता नियंत्रण:

  1. रा.ज.वि.अ. द्वारा केरल सरकार को दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार यह निर्णय लिया गया कि 75% निर्भरता योग्य यील्ड के 10% को, एकमुश्त रूप से अनंतिम तौर पर इस क्षेत्र में लवणता नियंत्रण के लिए छोड़ा जाएगा, जब तक इस क्षेत्र में विस्तृत अध्ययन लंबित हैं। (14वीं त.स.स.)

पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी हेतु नदी में छोड़ा गया जल

  1. पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी हेतु नदी में जल की कितनी मात्रा छोड़ी जाए के संबंध में निर्णय लिया गया कि यह मुद्दा विशेषज्ञ समिति या वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा तय किया जाएगा। (17वीं त.स.स.)
  2. अनुप्रवाही आवश्यकताओं की पूर्ति के बाद पथांतरण ढांचे पर अंत:प्रवाह के 10% न्यूनतम गैर-मौसमी बहाव को भंडारण के साथ पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी हेतु सुरक्षित रखा जाना चाहिए। यह भंडारण के अनुप्रवाह में औसतन गैर-मौसमी प्राकृतिक बहाव का 10% हो सकता है। (23वीं त.स.स.)

VII. वार्षिक सिंचाई:-

  1. विद्यमान एवं चालू परियोजनाओं के मामले में सिंचाई की तीव्रता वर्तमान उपयोग के अनुसार होगी। भविष्य की परियोजनाओं के लिए प्रायद्वीपीय नदी विकास के अधीन बड़ी परियोजनाओं के लिए 150%, मध्यम परियोजनाओं के लिए 125% एवं लघु परियोजनाओं के लिए 100% तीव्रता मानी जा सकती है। जहां भी यह भविष्य की परियोजनाओं के लिए उक्त दर्शित प्रतिशत से कम हो, वहां सिंचाई की वर्तमान तीव्रता में वृद्धि करने के लिए विद्यमान भंडारणों में वृद्धि की संभावनाओं को भी अध्ययनों में सम्मिलित किया जाना चाहिए। (7वीं त.स.स.)
  2. अंतरित किए जाने वाले अधिशेष जल का निर्धारण 60% निवल कृषि योग्य क्षेत्र की विस्तारित सिंचाई हेतु बेसिन की आवश्यकताओं को पूरा करने के बाद ही किया जाना चाहिए। (10वीं त.स.स.)

VII. 2025 ई० तक सिंचाई सुविधा में लाए जाने वाले क्षेत्र:-

  1. जल की न्यूनता वाले क्षेत्रों में बेसिनों/उप-बेसिनों के कृषि योग्य क्षेत्र की कम से कम 30% भूमि को सतही जल से सिंचाई उपलब्ध के प्रयास पहले किए जाएंगे। (9वीं त.स.स.)
  2. ऐसी जल-न्यून बेसिनों/उप बेसिनों, जहां पर सतही जल से कृषि योग्य भूमि की विद्यमान सिंचाई लगभग 30% है, वहां रा.ज.वि.अ. को कृषि योग्य भूमि के 60% तक सिंचाई का विस्तार कराने पर विचार करना चाहिए तथा सिंचित किए जाने वाला अतिरिक्त क्षेत्र एकल सूखी फसल वाला होना चाहिए जिसमें गन्ना एवं धान जैसी अधिक जल लेने वाली फसलों को सम्मिलित नहीं किया जाएगा। (9वीं त.स.स.)
  3. अन्य बेसिनों से अंतरण द्वारा जल-न्यून क्षेत्र में कृषि योग्य क्षेत्र में 30% से 60% तक सिंचाई विस्तार की जांच भी आर्थिक मापदंडों के आधार पर की जानी चाहिए। (9वीं त.स.स.)
  4. जल के पथांतरण से पहले, कृषि योग्य क्षेत्र का न्यूनतम 60% सिंचाई स्तर वार्षिक सिंचाई के रूप में लाया जाए, जैसा कि रा.ज.वि.अ. के अध्ययनों में तकनीकी सलाहकार समिति के पूर्व के निर्णयानुसार पालन किया जा रहा है, को जारी रखा जाए। (18वीं त.स.स.)
  5. जल संतुलन अध्ययनों के अद्यतन करते समय, कृषि योग्य क्षेत्र उपलब्धता की अन्य परियोजना आदि के साथ अतिव्याप्ति के संबंध में प्रत्येक प्रस्तावित परियोजना के कमान क्षेत्र की जांच की जा सकती है। (22वीं त.स.स.)

IX. सिंचाई जल की आवश्यकता:

  1. सिंचाई के लिए जल की आवश्यकता की गणना जलवायु-विज्ञान संबंधी दृष्टिकोण एवं क्षेत्र के लिए किए गए यथोचित प्रावधानों तथा संचरण हानि के साथ-साथ भंडारों से वाष्पीकरण के आधार पर की जानी चाहिए। (7वीं त.स.स.)
  2. रा.ज.वि.अ. को अस्तर एवं बिना अस्तर वाली दोनों सिंचाई नहरों में होने वाली हानियों पर एक संक्षिप्त टिप्पण तैयार करना चाहिए, तथा आगे की कार्यवाही हेतु तकनीकी सलाहकार समिति के सदस्यों के मध्य इसे परिचालित कराना चाहिए। इस दौरान, रा.ज.वि.अ. बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं के संबंध में जल संतुलन अध्ययन करने के लिए सिंचाई क्षमता हेतु 60% के आंकड़े को मानकर अध्ययन कर सकता है। (9वीं त.स.स.)
  3. वाष्पीकरण से होने वाली हानि बेसिन में और इसके आस-पास विद्यमान बड़े एवं मध्यम जलाशयों हेतु उपलब्ध आंकड़ों पर आधारित हो सकती हैं। यह निर्णय भी लिया गया कि वाष्पीकरण से होने वाली हानि का कोई भी आंकड़ा, जिसे न्यायाधिकरणों के पंचाट या राज्यों के मध्य हुए समझौतों में स्वीकार किया गया है, उसे संबंधित बेसिन/उप-बेसिन का अध्ययन करने के लिए रा.ज.वि.अ. ले सकता है। (9वीं त.स.स.)
  4. यह निर्णय लिया गया कि वास्तविक आंकड़े उपलब्ध न होने पर भंडारण से निकासी के 20% को वाष्पन हानि के रूप में माना जाएगा। तकनीकी सलाहकार समिति ने लघु योजनाओं के लिए भी इन्हीं आंकड़ों की अनुशंसा की है। (11वीं त.स.स.)
  5. रा.ज.वि.अ. बड़ी एवं मध्यम सिंचाई परियोजनाओं के लिए 55% सिंचाई क्षमता, जिसका रिजनरेशन मूल्य 10% होगा एवं बिना किसी रिजनरेशन को सम्मिलित करते हुए लघु परियोजनाओं के लिए 70% सिंचाई क्षमता अपना सकता है। (11वीं त.स.स.)

X. रिजनरेशन:-

  1. रा.ज.वि.अ. द्वारा तैयार किए गए जल संतुलन अध्ययन में, सभी बड़ी, मध्यम एवं लघु परियोजनाओं द्वारा उपयोग करने के लिए 10% मूल्य को रिजनरेशन के रूप में सम्मिलित किया जाएगा। (7वीं त.स.स.)
  2. कृष्णा, गोदावरी एवं अन्य बेसिनों के मामले में, जहां न्यायाधिकरण पंचाट उपलब्ध हैं, रा.ज.वि.अ. अध्ययनों में सिंचाई, घरेलू, औद्योगिक एवं अन्य उपयोग के लिए बहाव होने के आकलित रिजनरेशन को पंचाट में जैसा निर्दिष्ट किया जाता है, वैसा ही लिया जा सकता है। अन्य बेसिनों/उप-बेसिनों के संबंध में रा.ज.वि.अ. अध्ययनों में आकलित रिजनरेशन सतही एवं भूजल से 10% सिंचाई उपयोग तथा घरेलू एवं औद्योगिक दोनों प्रकार के उपयोग में 80% जल उपयोग सतही जल संसाधनों से किया जाएगा। घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए भूजल संसाधनों में से किसी प्रकार का रिजनरेशन नहीं लिया जाएगा। (9वीं त.स.स.)
  3. रिजनरेशन को इस प्रकार से लिया जाएगा, (i) सभी विद्यमान चालू एवं भविष्य की बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं में आयातित जल सहित सिंचाई के लिए उपयोग में लाए जा रहे निवल जल का 10%, (ii) लघु सिंचाई योजनाओं हेतु 80% घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग के लिए उपयोग में लाए जा रहे सतही जल तथा घरेलू एवं औद्योगिक उपयोग जिनमें भूजल का उपयोग हो रहा है, के लिए कोई भी रिजनरेशन नहीं माना जाएगा। (11वीं त.स.स.)
  4. जहां तक रा.ज.वि.अ. अध्ययनों का संबंध है, वर्तमान परियोजनाओं के संबंध में निवल उपयोग का 18% रिजनरेशन हेतु लिया जाना चाहिए तथा कावेरी बेसिन की उप-बेसिनों में विद्यमान परियोजनाओं में उसी के समान तथा चालू और प्रस्तावित बड़ी और मध्यम परियोजनाओं में 10% रिजनरेशन लिया जाना चाहिए। (15वीं त.स.स.)

XI. हिमालयी घटक अध्ययनों से संबंधित विशेष तकनीकी बिंदु:-

1. सिंचाई की तीव्रता:

हिमालयी नदियों की बेसिनों में यथेष्ट भूजल क्षमता की उपलब्धता पर विचार करते समय यह निर्णय लिया गया कि ऐसे क्षेत्र जहां पर विद्यमान सिंचाई क्षमता 100% से कम है, वहां उसे सतही जल द्वारा 100% तक बढ़ाया जाए। जहां कहीं भी विद्यमान सिंचाई क्षमता 100% से अधिक है, इसकी तीव्रता समान स्तर पर रह सकती है। उपरोक्त इंगित सिंचाई क्षमता से बढ़कर अतिरिक्त तीव्रता भूजल का उपयोग संयुक्त उपयोग को बढ़ावा देने हेतु किया जा सकता है एवं जल भराव तथा लवणता की समस्याओं का परिवर्जन हो। (20वीं त.स.स.)

2. मार्गस्थ क्षेत्रों में सिंचाई:

लिंक नहरों के ऐसे क्षेत्र जिन्हें किसी अन्य सिंचाई योजना के दायरे में नहीं लिया गया है, वहां 100% सिंचाई क्षमता सतही जल से एवं उससे अतिरिक्त भूजल द्वारा उपलब्ध कराई जा सकती है। (20वीं त.स.स.)

3. लक्ष्य क्षेत्रों में सिंचाई:

लक्ष्य क्षेत्रों को व्यापक सिंचाई के दायरे में लिया जाना चाहिए एवं अंतरित जल से अधिकतम 100% तक की तीव्रता प्रदान की जानी चाहिए। (20वीं त.स.स.)

4. पथांतरण स्थलों के अनुप्रवाह की जल आवश्यकताएं:

जहां पर पथांतरण अपेक्षित है, वहां पर जल संतुलन अध्ययन करते समय जल की आवश्यकताओं में वचनबद्ध उपयोगों एवं अतिरिक्त आवश्यकताओं को भी सम्मिलित किया जाएगा, जिसकी पूर्ति अनुप्रवाह में उपलब्ध जल से नहीं हो सकती है। (20वीं त.स.स.)

5. मौसमी जल संतुलन:

उन पथांतरण स्थलों पर, जहां जलाशय अपेक्षित हैं, जल संतुलन अध्ययन वार्षिक आधार पर किए जाएंगे, क्योंकि अधिकांश बहाव को विनियमित माना जाता जा सकता है। तथापि, उन पथांतरण स्थलों पर, जहां जलाशय अपेक्षित नहीं हैं, वहां जल संतुलन अध्ययन मौसमी आधार पर किए जाएंगे। (20वीं त.स.स.)

XII. अंतर्बेसिन जल अंतरण लिंकों के लिए इष्टतम उत्थापन:-

यह निर्णय लिया गया कि रा.ज.वि.अ. की तकनीकी सलाहकार समिति को किसी विशेष अध्ययन की सूचनाएं या प्रतिवेदन उपलब्ध होने तक आयोजना लिंकों के लिए वर्तमान में अधिकतम के रूप में 120 मी० उत्थापन जारी रखा जाए। (25वीं त.स.स.)

XIII. संभाव्यता प्रतिवेदन तैयार करने हेतु आवश्यक सर्वेक्षण और जांच की सीमा के संबंध में दिशानिर्देश:-

1. अंत:राज्यीय लिंक:

संभाव्यता प्रतिवेदन तैयार करने हेतु आवश्यक सर्वेक्षणों और अन्वेषण की सीमा के बारे में रा.ज.वि.अ. द्वारा तैयार किए गए दिशानिर्देशों को तकनीकी समिति द्वारा स्वीकार किया गया है। (25वीं त.स.स.)

2. अंत:राज्यीय लिंक प्रस्ताव:

 

रा.ज.वि.अ. की स्थापना के बाद से आयोजित

तकनीकी सलाहकार समिति की बैठकों की तिथियों का विवरण

त.स.स. बैठक तिथि/स्थल
पहली 30.11.1983 (नई दिल्ली)
दूसरी 22.12.1983 (नई दिल्ली)
तीसरी 29.03.1984 (नई दिल्ली)
चौथी 31.051984 (नई दिल्ली)
पांचवी 17.09.1984 (नई दिल्ली)
छठवीं 25.05.1985 (नई दिल्ली)
सातवीं 01.11.1985 (नागपुर)
आठवीं 29.05.1986 (नई दिल्ली)
नवमी 13.02.1987 (नई दिल्ली)
दसवीं 29.10.1987 (नई दिल्ली)
11वीं 18.08.1988 (नई दिल्ली)
12वीं 30.05.1989 (नई दिल्ली)
13वीं 20.12.1989 (नई दिल्ली)
14वीं 11.10.1990 (नई दिल्ली)
15वीं 14.06.1991 (नई दिल्ली)
16वीं 28.01.1992 (नई दिल्ली)
17वीं 06.08.1992 (नई दिल्ली)
18वीं 10.03.1993 (नई दिल्ली)
19वीं 26.10.1993 (नई दिल्ली)
20वीं 13.05.1994 (नई दिल्ली)
21वीं 14.12.1994 (नई दिल्ली)
22वीं 05.06.1995 (नई दिल्ली)
23वीं 11.12.1995 (नई दिल्ली)
24वीं 18.06.1996 (नई दिल्ली)
25वीं 23.12.1996 (सिलीगुड़ी)
26वीं 01.07.1997 (नई दिल्ली)
27वीं 20.02.1998 (नई दिल्ली)
28वीं 27.10.1998 (नई दिल्ली)
29वीं 02.07.1999 (नई दिल्ली)
30वीं 05.07.2000 (नई दिल्ली)
31वीं 16.07.2001 (नई दिल्ली)
32वीं 08.09.2003 (नई दिल्ली)
33वीं 02.09.2004 (नई दिल्ली)
34वीं 06.09.2005 (नई दिल्ली)
35वीं 22.09.2006 (नई दिल्ली)
36वीं 19.07.2007 (नई दिल्ली)
37वीं 12.09.2008 (नई दिल्ली)
38वीं 22.01.2010 (नई दिल्ली)
39वीं 24.02.2011 (नई दिल्ली)
40वीं 20.01.2012 (नई दिल्ली)
41वीं 05.10.2012 (नई दिल्ली)
42वीं 23.05.2016 (नई दिल्ली)