-
क्या नदी जोड़ वांछनीय है। यदि हां, तो क्या यह संभव है ?
जी हां, देश में वर्षा के स्थान एवं समय के अनुरूप बंटवारा न होने के कारण होने वाली समस्याओं पर नियंत्रण के लिए नदी जोड़ आवश्यक है। क्षेत्रीय असंतुलन को समाप्त करने के लिए भी नदी जोड़ आवश्यक है। राजविअ द्वारा किए गए देश की नदियों के अध्ययनों से प्रथम दृष्टया यह पता चलता है कि यह योजना तकनीकी रूप से संभाव्य है।
-
नदी जोड़ कार्यक्रम (आई.एल.आर) का दायरा क्या है ?
राज्यों और विभिन्न बेसिनों के मध्य समान रूप से जल की भागीदारी के लिए देश की बड़ी नदियों को जोड़ने के कार्यक्रम में 30 लिंक शामिल हैं। 16 लिंकों की संभाव्यता तैयार करने के लिए सर्वेक्षण एवं अन्वेषण कार्य प्रगति पर है, जबकि 8 लिंकों के लिए सर्वेक्षण एवं अन्वेषण कार्य पूरा कर लिया है। प्रत्येक लिंक की संभाव्यता रिपोर्ट तैयार होने के बाद विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डी पी आर) आरंभ की जाएगी। इस कार्यक्रम से लगभग 35 एम एच ए सिंचाई, 34000 मेगावाट अतिरिक्त जल विद्युत ऊर्जा, कई गांवों और शहरों को पेयजल सुविधाएं, इसके दायरे में आने वाले क्षेत्रों के सूखे का शमन और नियंत्रण, सीमित नौवहन तथा बड़े स्तर पर रोजगार सृजन, सामाजिक उत्थान, पर्यावरण में सुधार, वृक्षारोपण आदि जैसे अन्य लाभ भी मिलेंगे।
-
कार्यबल का मिशन क्या है? इस महत्वाकांक्षी परियोजना को सफल बनाने के लिए आप किस तरह से समर्थन (आर्थिक एवं राजनैतिक) की योजना बनाते हैं ?
कार्यबल:
आर्थिक संभाव्यता, सामाजिक आर्थिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव तथा पुन: स्थापना योजना तैयार करने के संबंध में अलग-अलग परियोजनाओं के मूल्यांकन के लिए मार्गदर्शन और मानदंड प्रदान करना; राज्यों के मध्य त्वरित मतैक्यता स्थापित कराने के लिए उचित क्रियाविधि तैयार करना; विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने तथा क्रियान्वयन के लिए विभिन्न परियोजना घटकों को प्राथमिकता देना; परियोजना के क्रियान्वयन के लिए उपयुक्त संगठनात्मक ढ़ांचे का प्रस्ताव देना परियोजना निधियन के लिए विभिन्न-तौर-तरीकों पर विचार करना; तथा कुछ परियोजना घटकों में शामिल होने वाले अंतराष्ट्रीय आयामों पर विचार करना। अध्यक्ष कार्यबल परियोजना पर मतैक्यता स्थापित कराने के लिए विभिन्न राज्यों के मुख्य मंत्रियों; संसद में विभिन्न पार्टियों के नेताओं और प्रतिष्ठित नागरिकों के साथ लगातार बात-चीत कर रहे हैं। -
परियोजना की चुनौतियां क्या-क्या हैं ?
सह बेसिन राज्यों, शामिल अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों, परियोजना प्रभावित लोगों के लिए पुनर्वास एवं पुन: स्थापना, संबंधित एजेंसियों से समय पर मंजूरी तथा परियोजना निधियन पर मतैक्यता एवं परियोजना का क्रियान्वयन, आदि इसमें सामने आने वाली सबसे बड़ी चुनौतियां हो सकती हैं।
-
आर्थिक विकास के परिप्रेक्ष्य में आप नदी जोड़ परियोजना को कैसे देखते हैं।
जैसा कि राजविअ द्वारा नदी जोड़ कार्यक्रम के लाभ बताए जा रहे हैं, इस परियोजना के क्रियान्वयन के दौरान तथा परियोजना क्रियान्वयन के बाद भी 35 एमएचए क्षेत्र को अतिरिक्त सिंचाई सुविधा, 34,000 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन, नौवहन उपलब्ध कराना, सामाजिक-आर्थिक विकास और बड़े स्तर पर रोजगार सृजन होगा।
-
क्या नदी जोड़ परियोजना पर्यावरणीय खतरे को रोकने की दृष्टि से एक संभाव्य प्रस्ताव है ?
जी हां, यह एक संभाव्य प्रस्ताव है क्योंकि भंडारण जलाशयों तथा नहरों के निर्माण से पर्यावरण में अपेक्षित सुधार होता है। नदी जोड़ के प्रस्ताव में प्रावधान है कि पारिस्थितिकी तथा नदी तंत्र की व्यवस्था हेतु इसमें कम वर्षा वाले मौसम में भी नदी प्रवाह को सुरक्षित रखा जाएगा परियोजना के क्रियान्वयन से जो समृद्धि आएगी वह आज के सबसे बड़े प्रदूषण गरीबी को भी दूर करेगी। फिर भी इसके पर्यावरणीय प्रभाव के लिए प्रत्येक परियोजना का अध्ययन किया जाएगा तथा किसी भी प्रतिकूल प्रभाव को कम करने के लिए सभी आवश्यक उपाय किए जाएंगे।
-
इस प्रकार की महत्वाकांक्षी परियोजनाओं में जन आंदोलन और पुनर्वास शामिल हो सकते हैं बडे पैमाने पर विस्थापन की स्थिति में कार्यबल क्या कदम उठाएगा कृपया प्रकाश कालें।
यह अनुमान लगाया गया है कि जलाशयों के निर्माण से कुछ लाख लोग प्रभावित होंगे। पुनर्वास की लागत परियोजना की लागत में शामिल होगी। कार्यबल भारत सरकार को यह सुझाव देने पर विचार कर रहा है कि पुनर्वास और पुन: स्थापना लागत अधिमानत: निर्धारित की गई है। नए स्थलों पर पुन:स्थापना के बाद विस्थापित किए गए लोगों को उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार सुनिश्चित करने के लिए विस्थापित लोगों को उचित पुनर्वास और पुनःस्थापना पैकेज दिए जाएंगे। यह सुनिश्चित करने के लिए कि आर.आर पैकेज अच्छी तरह से संभाला गया एन.जी.ओ को जोड़ने वाले स्पेशल परपज वीकल (एसपीवी) मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता आदि का भी सुझाव दिया जाएगा।
-
परियोजना को पूरा करने में कितने वर्ष लगेंगे ?
आई.एल.आर अवधारणा में 30 लिंक शामिल हैं, यह किसी भी तरह से एकल परियोजना नहीं है। कई मुद्दों को हल करना है, तथा विभिन्न परियोजनाओं के लिए अनुबंध किया जाना है। वास्तव में आई.एल.आर को पूरा करने के लिए कार्यबल सबसे अच्छे प्रयास/माध्यमों की गंभीरता से समीक्षा कर रही है। माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा 2016 तक इस कार्यक्रम को पूरा करने की वांच्छा को भी ध्यान में रखा जाएगा।
-
इस पर वित्तीय लागत कितनी आयेगी तथा इस प्रकार के परिणाम वाली परियोजना को पूरा करने के लिए संसाधन किस प्रकार जुटाएंगे ? बहुत से अर्थशास्त्रियों का तर्क है कि इस प्रकार के परिमाण वाली परियोजनाओं के लिए भारत की विश्व बैंक जैसी संस्थाओं से ऋण लेना होगा?
आई.एल.आर लिंकों की समग्र लागत समेकित रूप में अभी तक आकलित नहीं की गई है। यह विस्तृत परियोजना रिपोर्ट पर आधारित होगी जिन्हें अलग-अलग परियोजनाओं के लिए तैयार किया जा रहा है। इन लिंकों की लागत निकालने के बाद समग्र लागत का आकलन किया जाएगा। इसके निधियन के लिए देश में प्रतिष्ठित वित्तीय संस्थानों द्वारा निधियन विकल्पों पर अध्ययन किया जा रहा है। प्रारंभिक अध्ययनों से पता चलता है कि इसे आंतरिक रूप से जुटाया जा सकता है। फिलहाल बाह्य सहयोग का लिए कोई प्रस्ताव नहीं है। निधियन समूह का शुरुआती रुझान प्रोत्साहित करने वाला रहा है तथा निधियन की व्यवस्था का माध्यम मुख्य मुद्दा है जिस पर कार्यबल अध्ययन कर रहा है। जल के निजीकरण का कोई ऐजेंडा नहीं है। यह अस्पष्ट और भ्रामक है।
-
परियोजना में कितनी नदियां शामिल हैं ?
देश की अधिकांश बड़ी नदियों को जोड़ा जाएगा।
-
अंतरित किए जाने वाले जल की प्रमात्रा ?
अधिशेष जल वाले बेसिनों/क्षेत्रों से जल कमी वाली बेसिनों/क्षेत्रों को लगभग 200 बीसीएम वार्षिक जल अंतरित किए जाने पर बल दिया जाता है।
-
कितने बांध बनाए जाएंगे ?
अवधारणा 32 बांधों एवं भंडारणों को निर्माण शामिल है।
-
यह परियोजना विद्युत उत्पादन के लिए किस प्रकार लाभकारी होगी ?
लगभग 34000 मेगा वाट जल विद्युत ऊर्जा का उत्पादन होगा।
-
परियोजना पूरी होने के बाद, खाद्यान्न उत्पादन में प्रक्षेपित लाभ कितना होगा ?
दपारंपरिक सिंचाई परियोजनाओं से प्राप्त 140 मेगा हैक्टेयर से बढ़कर नदी जोड़ द्वारा 35 मेगा हैक्टेयर सिंचित कृषि और बढ़ जाएगी। इसे वर्ष 2050 के लिए प्रक्षेपित जनसंख्या की खाद्यान्न आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त माना जा रहा है।
-
नदी परियोजनाओं के लिए निधियन कैसे एकत्र किया जाएगा ?
विशेषज्ञता प्राप्त संस्थानों और एजेंसियों के परामर्श से कार्यबल इसका अध्ययन कर रहा है।
-
इसके अंतर्गत आने वाला कुल भौगोलिक क्षेत्र ?
35 मेगा हेक्टेयर की सिंचाई। किन्तु चूंकि राज्यों और सम्पूर्ण राष्ट्र में सिंचित विकास के कारण होने वाले अंदरूनी हिस्सों के भी विकास का प्रभाव पड़ेगा इसलिए यह प्रभाव तुरंत विस्तृत रूप से होगा अत: इसे किसी विशिष्ट क्षेत्र के संदर्भ में सूक्ष्म रूप से नहीं बताया जा सकता है।
-
क्या इस परियोजना के लिए पहले से भौगोलिक सर्वेक्षण किया गया ? वे क्या संकेत देते हैं ?
जी हां, अब तक किए गए भौगोलिक सर्वेक्षणों (संभवय स्तर के लिए) से यह संकेत मिलते हैं कि कार्यक्रम तकनीकी रूप से संभाव्य है। डीपीआर के स्तर पर कार्य के लिए विस्तृत सर्वेक्षण अभी किये जाने हैं।
-
इस कार्यक्रम के लिए कितनी ऊर्जा की आवश्यकता होगी? तथा इसे कैसे उपलब्ध कराया जाएगा ?
कुछ लिंकों में शामिल लिफ्टों के संचालन के लिए लगभग 4000 मेगावाट ऊर्जा की आवश्यकता होगी। आवश्यकता कम होने के कारण इसे उपलब्ध ऊर्जा उत्पादन से ही पूरा किया जा सकता है। इसके साथ-साथ इस कार्यक्रम से 34000 मेगावाट ऊर्जा उत्पादन होगा।
-
क्या यह कार्यक्रम तकनीकी और आर्थिक दृष्टिकोण से लाभकारी है ?
जी हां, पूर्व संभाव्यता अध्ययन (30 लिंक) तथा 8 लिंकों के संभाव्यता अध्ययनों से इसकी पुष्टि होती है।
-
क्या यह कार्यक्रम विदेशी तकनीकी सहयोग लेगा ?
आई.एल.आर कार्यक्रम को संभालने के लिए देश में पर्याप्त स्वदेशी तकनीकी है। तथापि, यदि आवश्यक हुआ तो विदेशी तकनीकी लेने में संकोच नहीं किया जागएा।
-
यह परियोजना उत्तरी भारत में बाढ़ के कारण मची तबाही से कैसे निपटेगी ?
समग्र नदी जोड़ कार्यक्रम देश के प्रायद्वीपीय और हिमालय दोनो भागों में का सभी भारतीय नदियों को आपस में जोडने वाले 30 लिंकों से बना है। इसमें बाढ़ लाने वाली कई महत्वपूर्ण नदियों जैसे कोसी, महानदी आदि पर आर-पार बने बड़े भण्डारणों से यथा प्रस्तावित बहुत से लिंको से प्रारम्भ किया जाएगा। यह परियोजनाएं ‘’बहु उदे्देश्यीय परियोजनाओं’’ के रूप में आयोजित की गई हैं, जिनका एक उद्देश्य नदियों के अनुप्रवाह में बाढ़ में कमी लाना भी है। भण्डारणें के नीचे मुख्य नदियों में बाढ़ का संचलित प्रवाह सार्थक रूप से उपलब्ध होगा। इससे विनाशकरी प्रकृति वाली चरम बाढ़ से उत्पन्न होने वाली आपदाओं में बहुत अधिक कमी लाएगा। तथापि, भंडारण बाधों के अनुप्रवाह के जल ग्रहण क्षेत्रों में बाढ़ और तूफान के कारण हुई क्षति अपरिहार्य होगी तथा इसे अन्य ढांचागत और गैर ढांचागत उपायों से रोका जाएगा। आई एल आर कार्यक्रम के अंतर्गत सृजित घटकों के भाग के रूप में भंडारण बांधों को तैयार करके समस्या को कम किया जा सकता है।
-
यह परियोजना किस प्रकार डेक्कन के सूखी नदियों में वर्ष भर जल उपलब्ध कराने में सहयोग करेगी ?
नदी जोड़ के उद्देश्यों में एक उद्देश्य पारिस्थितिकीय कारणों से नदियों में न्यूनतम जल प्रवाह बनाए रखने की गारंटी भी है। विशेषकर प्रायद्वीपीय क्षेत्र की इस पक्षकार में बहुत अधिक महत्वपूर्ण है। बांध और भंडारण मानसून में उपलब्ध अतिरिक्त जल को तौर पर छोड़ने से पर्यावरणीय गुणवत्ता को बनाए रखने का हित साधनें में सफल होंगे।
-
क्या विदेशों में भी ऐसे कार्यक्रम बनाए गए हैं ?
जी हां, कई देशों में ऐसे कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया गया है। उदाहरण के लिए यूएसए, कनाडा, चीन, फ्रांस, जर्मनी आदि कुछ देशों के नाम लिए जा सकते हैं।
-
स्थलाकृतिक समस्याएं-
वर्तमान टेक्नॉलॉजी के होते हुए अब इसे दुर्गम नहीं माना जाता है। इसरो/एन.आर.एस.ए. की सेटेलाइट इमेजरी, भारतीय सर्वेक्षण की एएलटीएम जैसी नवोन्नत प्रौद्योगिकी के विस्तृत उपयोग का प्रस्ताव है।
-
अरावली आदि जैसी पर्वत श्रृंखलाओं पर कैसे काम किया जाएगा ?
इन मुद्दों को संभालने के लिए वर्तमान में टनलिंग प्रौद्योगिकी पर्याप्त है।
-
क्या यह भय सच है कि यह कार्यक्रम भौगोलिक ढ़ांचों को प्रभावित करेगा ?
यह भय किसी अध्ययन के आधार पर नहीं है। इस प्रकार की आशंका में कोई सच्चाई नहीं है।
-
भारत सरकार के अभिकथन कि इस परियोजना से विकास होगा और जीवन स्तर में वृद्धि के बावजूद भारत में इसके प्रभाव के बारे में संदेह है। दूसरी ओर एन आर आई द्वारा इस परियोजना के बारे में अनुकूल प्रतिक्रया मिली हैं। ऐसा क्यों ? यह सत्य नहीं है।
कई क्षेत्रों में पानी की कमी का सामना करने के कारण बड़े पैमाने पर किसानों/व्यक्तियों और राष्ट्र द्वारा निरन्तर फेले जा रहे दबाव के कारण मीडिया में परियोजना की आवश्यकता और संभाव्यता के संबंध में मीडिया में सरकार के समान अभिकथन से अधिक ही प्रतिक्रिया है। आंतरिक और साथ ही साथ बाहरी समूहों के भी इस बारे में अनुकूल चिार हैं; एकल संकेत कि केवल एन आर आई ही इस परियोजना का समर्थन कर रहे हैं, सत्य नहीं है।
-
क्या किसी बहुउद्देशीय/निजी कंपनी द्वारा इस परियोजना में कोई रुचि दिखाई गई है ?
उद्योगों का आरंभिक रुझान प्रोत्साहित करने वाला है।
-
क्या इस कार्यक्रम से बांगलादेश और पाकिस्तान के साथ की गई जल संधि प्रभावित होंगी ?
आई.एल.आर. कार्यक्रम अपने पड़ोसी देशों के साथ हुई वर्तमान संधियों का सम्मान करेगी।
-
क्या भारत सरकार इस परियोजना को आरंभ करने में जल्दबाजी कर रही है ? इसके कोई विशेष कारण ?
विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (डीपीआर) के आधार पर संभाव्यता निर्धारित होने के बाद ही परियोजना की शुरुआत की जाएगी जिनमें सामाजिक मुद्दों, पर्यावरणीय एवं पारिस्थितरीय, आर्थिक तथा अन्य मुद्दे का पूरा ध्यान रखा जाएगा।
-
सभी आपत्तियों/संसाधनों की आवश्यकता आदि को ध्यान में रखते हुए परियोजना को वास्तव में आरंभ किए जाने की संभावित तिथि ?
डीपीआर के आधार पर इसकी संभाव्यता निर्धारित हो जाने के उपरांत ही परियोजना के आरंभ होने की संभावना है; डीपीआर आरंभ करने से पहले सभी संबंधित राज्य सरकारों से मतैक्यता के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। परियोजना अलग-अलग लिंक के रूप में आरंभ होगी तथा वर्ष 2007 में इसके आरंभ होने की संभावना है।
-
भारत में वन क्षेत्र पहले आवश्यक 23% से कम है। आई.एल.आर कार्यक्रम में 72,202 हैक्टेयर डूब क्षेत्र का आकलन किया है। इस संबंध में कार्यबल क्या कर पाएगा?
भारत सरकार के वन संरक्षण अधिनियम प्रतिपूरक वनरोपण, वाटरशेड ट्रीटमेंट तथा अन्य भूमि एवं जल प्रबंधन कार्यक्रमों के माध्यम से वनों की सुरक्षा के में पर्याप्त प्रावधान रखे गए हैं। देश में वन क्षेत्र में कमी को रोकने के लिए आई.एल.आर में ऐसे नियमों को लागू किया जाएगा।
-
बांध विरोधी गैर सरकारी संगठनों के विरोध का सामना कैसे किया जाएगा?
बांध विरोधी गैर सरकारी संगठनों की आपत्तियों को इन समूहों के साथ रचनात्मक जुड़ाव तथा वार्तालाप के माध्यम से दूर किया जाएगा। इनके साथ हमारे वार्तालाप के मुख्य आधार में पारदर्शिता, वैकल्पिक व्यवस्थाएं तथा लागत लाभ प्रतिफल के साथ-साथ संभावित लेन-देन को शामिल किया जाएगा।
-
परियोजना के लिए देश द्वारा चुकाई जाने वाली विशाल पर्यावरणीय लागत के आधार पर बहुत से पर्यावरणविदों द्वारा इस परियोजना का विरोध किया जा रहा है और उनका सुझाव है कि ग्रामीण जनसंख्या की जल उपलब्धता बढ़ाने के लिए चैक बांधों की परियोजनाओं और ग्रामीण तालाबों का विकास किया जाए।
यह सत्य नहीं है।
बहुत से पर्यावरणविदों ने इसके अत्यधिक लाभ को माना है, चूंकि यह कार्यक्रम पर्यावरण तथा पारिस्थितिकी के संबंध में चिंता के विषयों का हल निकालने के अवसरों में वृद्धि करेगा। यह वन आवरण के लिए एक वरदान बन सकता है क्योंकि जहां भी लिंकों द्वारा जल अंतरण संभव होगा वहां-वहां वनों को काफी फैलाया जा सकेगा। इसी के समान जो धाराएं वैसे सूख जाती हैं उनमें भी न्यूनतम प्रवाह बनाए रखने का वेहतर नियंत्राण प्राप्त होगा। जल अधिकता वाले बेसिनों से जल कमी वाले बेसिनों और प्रायद्वीपीय नदियों में जल के अंतरण से गैर-मानसूनी मौसम में लगभग सूख जाने वाली कुछ नदियों में प्रवाह को पुन: बढ़ाया जा सकेगा। इस तरीके से देखा से जाए, तो इसके पर्यावरणीय लागत और दोनों ही हैं, जिन्हे समग्र रूप में देखा जाएगा। पहले से ही यह मामना गलत है कि पर्यावरणीय बहुत अधिक होंगी जिनके कारण नदी जोड़ सम्भाव्य नहीं है। नदी जोड़ देश में पहले से चलाए जा रहे जल संरक्षण उपायों के खर्चे से नहीं किया जाएगा। ये उपाय जारी रखे जांएगे। इन परियोजनाओं में केवल दिबेस करने भर से ही, तथापि, कावेरी का साबरमती जैसे जल कमी वाले बेसिनों की समस्याओं को समाप्त नहीं किया जा सकेगा; बढ़ती हुई जनसंख्या की भविष्य की खाद्यान आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए, वर्तमान में विकसित बड़ी और मंझौली परियोजनाओं के स्तर के साथ ऐसा एकांगी निवेष इसे संभव नहीं कर पाएगा। जब देश में अन्य जगहों पर जल समुद्र में बहकर बेकार चला जाता है तब देश के जल कमी वाले बेसिनों में परिणाम स्वरूप सूखे की सतत समस्या के निदान के लिए नदी जोड़ की आवश्यकता है। -
देश की वर्तमान आर्थिक स्थिति को देखते हुए, आप ‘’मेगाबजट’’ को कैसे तर्कसंगत साबित करेंगे? इसके स्थान पर क्या एक परिष्कृत सिंचाई प्रणाली को अपनाना सम्भव नहीं होगा, जो न केवल लागत प्रभावी हो और देश की वंचित ग्रामीण जनसंख्या तक भी पहुंच सके।
नदी जोड़ परियोजना कोई ‘एक’ परियोजना नहीं है; इसमें लिंक परियोजनाओं की एक श्रृंखला शामिल है जिसे एक समय सीमा में चरणबद्ध तरीके से क्रियान्वित किया जाना है। पूर्व संभाव्यता स्तर पर इन परियोजनाओं का अध्ययन करते समय, सिंचाई परियोजनाओं के विद्यमान मानदंडों पर आधारित वित्तीय एवं आर्थिक संभाव्यताओं का भी अध्ययन किया गया है। इतना ही नहीं बल्कि भारत सरकार द्वारा आई.एल.आर पर गठित कार्यबल द्वारा प्रत्येक लिंक की जांच की जाएगी तथा उसके बाद जिन लिंकों की डीपीआर तैयार की जाएगी उन्हीं का क्रियान्वयन किया जाएगा। जल प्रबंधन में जल दक्षता सुनिश्चित करने के लिए समेकित कार्यक्रम के एक भाग के रूप में भी परिष्कृत सिंचाई प्रणाली विकसित की जाएगी।
-
यथार्थवादी रूप से कहें तो 2016 तक क्या हम कभी भी इस परियोजना को पूरा कर पाएंगे ? यह बहुत बड़ा कार्य है जिसमें बहुत बड़ी धन राशि की आवश्यकता है और कई राज्य शामिल हैं। उदाहरण के तौर पर गुजरात के सरदार सरोवर बांध परियोजना को ही लेते हैं जो आई.एल.आर की तुलना में बहुत छोटा कार्य है और फिर भी ?
परियोजना का क्रियान्वयन वित्तीय, तकनीकी सामाजिक एवं पर्यावरणीय आदि कई कारणों पर निर्भर होती है। कार्यबल वर्ष 2016 तक निर्धारित की गई एक निश्चित समय सीमा के भीतर योजना को पूरा करने की युक्तियों पर देगा। बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं के क्रियान्वयन में अधिकतर विलम्ब पर्यावरणीय तथा वनों की दृष्टि से, पुर्नवास तथा पुन:स्थापन, अन्तरराज्यीय मुद्दों और अन्य में समय से मंजूरी ना मिलने के कारण होता है। तथापि आई.एल.आर के लिए इन मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है ताकि क्रियान्वयन चरण में विलंब से बचने के लिए इनको पहले से ही हल किया जा सके।
-
चूंकि दक्षिणी गुजरात तथा विद्यमान जल विद्युत में सिंचाई जल की पूरी मांग को पूरा करने के लिए उकाई बांध पर जल अपर्याप्त है, तो क्या तापी और नर्मदा नदी नदियों विशेषकर उकाई बांध तथा सरदार सरोवर बांध को प्राथमिकता के आधार पर जोड़ने की योजना है।
जी हां, राजविअ ने मुंबई के उत्तर तथा तापी के दक्षिण में पश्चिमी पवाही नदियों को जोड़ने के लिए अध्ययन किया है। इस घटक के अधीन ऐसा एक लिंक पार-तापी-नर्मदा लिंक है। यह लिंक वैसे तो उकाई जलाशय से होकर गुजरती है लेकिन इसमें तापी बेसिन में किसी भी मात्रा में जल पथांतरण पर बल नहीं दिया गया है। इसी प्रकार लिंक नहर, नर्मदा को पार करती है, लेकिन इस लिंक से नर्मदा जल के जल पथांतरण का कोई प्रस्ताव नहीं है।
-
यह भी माना जाता है कि इस परियोजना से महाराष्ट्र को कोई लाभ नहीं मिलेगा तथा यह राज्य को पूरी तरह से अलग-अलग रखेगा।
यह धारणा गलत है। महाराष्ट्र को लाभ पहुंचाने वाली लिंक पार-तापी-नर्मदा तथा दमनगंगा- पिंजाल (मुंबई पेयजल आपूर्ति) हैं आगे इस बात की समीक्षा की जाएगी कि किस तरह से राज्य को लाभान्वित किया जा सकता है।
-
क्या आपने सामान्य तौर पर यूरोप में तथा विशेष तौर पर जर्मनी में नदी नेटवर्क का अध्ययन किया है ?
प्रत्येक देश नें अपनी आवश्यकता और अपेक्षाओं के अनुरूप जल प्रबंधन नीतियों और कार्यक्रमों को अपनाया है। यूरोप और जर्मनी की जलवायु समशीतोष्ण है और वर्ष में कई बार समान वर्षा होती है। अत: इन क्षेत्रों में जल भंडारण की आवश्यकता नहीं है। भारत में, मानसूनी महीना में ही वर्षा होती है इसलिए भंडारण आवश्यक है। साथ ही गंभीर जल कमी वाले बेसिनों जिनके जल स्रोत बारहमासी भी नहीं हैं, उनमें जल आपूर्ति के लिए बाहरी अनुपूरक जल की भी आवश्यकता होती है। इसलिए अंतर बेसिन जल अंतरण की आवश्यकता है।
-
परियोजना के पक्ष में जनमत तैयार करने के लिए कार्यबल द्वारा उठाए गए कदमों पर प्रकाश डालें ?
अध्यक्ष, नदी जोड़ पर कार्यबल ने बड़े पैमाने पर आम लोगों, मीडिया, राजनैतिक नेताओं तथा आम राय बनाने वालों के साथ व्यापक बातचीत की है। सभी आवश्यक जानकारी उपलब्ध कराने में ‘कम्युनिकेशन कोर ग्रुप’ कार्यबल की सहायता कर रहा है।
-
परियोजना को आरंभ करने के लिए कार्यबल की तकनीकी विशेषज्ञता कितनी सक्षम है ?
पूर्णतया सक्षम है। डॉ. सी.सी. पटेल, उपाध्यक्ष, डॉ. सी.डी. थत्ते, सदस्य सचिव कार्यबल (टी एफ) दोनों जल संसाधन मंत्रालय के पूर्व सचिव रहे हैं तथा परियोजनाओं की आयोजना, क्रियान्वयन, संचालन तथा रखरखाव के क्षेत्र में विस्तृत अनुभव रखने वाले इंजीनियर हैं। कार्यबल के सदस्य सामाजिक, पर्यावरण, पारिस्थितिकी, वित्तीयन, विधिक तथा इंजीनियरिंग आदि के विभिन्न विशेषज्ञता वाले क्षेत्रों से लिए गए हैं। वे लोग जाने-माने विशेषज्ञ हैं। कार्यबल आईआईटी, एम.सी.ए.ई.आर, एवं एन.आई.पी.एफ एवं पी आदि जैसे संस्थानों और विभिन्न विशेषज्ञता प्राप्त इंजीनियरों की विशेषज्ञता संबंधी सेवाएं भी लेता है। जिन्हें कार्यबल के लिए रिसोर्स पर्सन/संस्थान के रूप में उपयोग किया जाता है।